डॉ. सुरेश गर्ग : निदेशक

मेरा नाम डॉ. सुरेश गर्ग है। मैं भारत के शूरवीरो की धरती राजस्थान राज्य में डेलासर गाँव का निवासी हूँ। मेरा जन्म 6 मार्च 1984 को धोरो की धरती जैसलमेर में हुआ। मेरे पिताजी का नाम श्री नाथू राम व माताजी का नाम भंवरी गर्ग है। बचपन मेरा जैसलमेर के टिल्लो के मध्य अठखेलिया व गाँवो की गलियों में बिता तथा उसी के बीच मेरी शिक्षा का पड़ाव शुरू हुआ ।

कक्षा प्रथम से लेकर बारह तक मेरी संपूर्ण शिक्षा सरकारी स्कुल में पूर्ण हुई व मेरे स्वयं के पिताजी भी सरकारी सेवा में प्रधानाचार्य के पद पर कार्यरत थे। स्कूल का वो शुरुवाती दौर हर किसी के जीवन में खास होता है जैसे की शिक्षकों से डाट खाना, शैतानी करना, रात को देर तक जाग कर गृहकार्य व पढ़ाई करना आदि |

मेरे पिताजी हमेशा मुझे कहा करते थे की शिक्षा के बिना व्यक्ति का जीवन उस तरह है जैसे जल बिना मछली अर्थात जीवन में शिक्षा किसी भी व्यक्ति की प्रथम प्राथमिकता होनी चाहिए। पिताजी के इसी व्यक्तव्य को मैं हमेशा जहन में रखता था तथा देर रात तक जाग कर पढता था तथा साथ में सहपाठियों की समस्याओं का भी हल करता था।

चुकी हमारा गाँव उस समय इतना विकसित नहीं था इसलिए शिक्षा के संसाधनों की कमी थी व बिजली कटौती वहा बड़ी समस्या थी जिसके कारण कई बार मैंने दीपक व मोमबती जला कर गृहकार्य व पढाई की है लेकिन वो कहते हैं की जब सपने आपके बड़े हो व राहे मुश्किल तो उस समय ईश्वर आपका साथ देता है। इस तरह ही मेरी स्कूली शिक्षा चल रही थी।

चूंकि मेरे पिताजी भी शिक्षा विभाग में कार्यरत थे तो मेरा भी बचपन से यही मकसद था की मै भी बड़ा होकर पिताजी की तरह ही शिक्षा के जगत में कार्य करुगा। उस समय मेरा लक्ष्य बस यह था की मुझे पुरे दिलो-जहन से पढ़ना है व जीवन में लोगो से हट कर कुछ बड़ा करना है जो देशहित व समाजहित के प्रति समर्पित हो।

मेरे दादाजी शुरू से ही बहुत ही अनुशासन प्रिय थे तथा वो हमे भी जीवन में अनुशासित रहने की सलाह देते थे। दादाजी को जब भी समय मिलता तब वो हमे राजस्थान के शूरवीर राजाओं जैसे की महाराणा प्रताप आदि की कहानियों व उनके वीरता के किस्से सुनाते थे तथा हमें भी उनके आदर्शों पर चलने की सलाह देते थे।

हम सब सुबह अक्सर जल्दी उठ जाया करते थे तथा योगासन, सूर्यनमस्कार इत्यादि किया करते थे उतनी ही देर में माताजी गाय के गोबर से चूल्हा लीप कर बाजरे का रोटला बनाई करती थी जिसको हम मक्खन व गुड के साथ बड़े चाव से खाते थे व उसके साथ छाछ मिल जाती तो समझो सोने पर सुहागा ।

धीरे धीरे समय बीतता गया व स्कूली शिक्षा पूर्ण हो गई व अब उच्च स्तरीय शिक्षा के लिए हमे गाँव छोड़ कर शहर की तरफ जाना होता था । उसी दरमियान मैं सन 2001 में अपनी उच्च शिक्षा के लिए जोधपुर आ गया। जोधपुर का वातावरण व यहाँ के अपनत्व ने मुझे अंदर तक झकझोर दिया था। उस समय मुझे जोधपुर से काफी लगाव हो गया था क्यूंकि यहाँ शिक्षा के संसाधनों की प्रचुर मात्रा में उपलब्धता थी व यंहा का परिवेश भी बहुत अच्छा था । जोधपुर को मैंने अपनी कर्म भूमी बना कर उच्च शिक्षा अर्जित करने में लग गया ।

मुझे आज भी याद है मा के हाथों का खाना छोड़ खुद के हाथों से बना कर खाना व रात में घंटो तक पढ़ते रहना इत्यादि । शुरु शुरू में तो घर की बहुत याद आती थी लेकिन शिक्षा व सपने भी जरूरी थे इसलिए खुद को दिलासा देते हुए खुद को समझाते थे की जीवन में संघर्ष भी जरुरी है।

शुरू से ही मेरे बहुत सारे मित्र थे लेकिन कुछ मित्र ऐसे भी थे जो मेरे दिल के काफी करीब थे जिसमें प्रितमचंद जो की मेरा कॉलेज मित्र था उसने भी मेरा काफी साथ दिया था व हम दोनों अक्सर साथ में ही पढ़ा करते थे।

वैसे शिक्षको की बात करू तो सबसे मुझे बहुत सहयोग व प्रेम मिला लेकिन प्रोफेसर श्री किशोरी लाल रैगर का मेरे जीवन में शिक्षा के पहलु पर विशेष योगदान रहा। इनके सानिध्य में ही मैंने पीएचडी की उपाधि प्राप्त की व इनसे मैंने बहुत कुछ सिखा । प्रोफेसर किशोरी लाल रैगर वर्तमान में जयनारायण विश्वविद्यालय जोधपुर में पत्रकारिता विभागाध्यक्ष के पद पर कार्यरत है।

उच्च स्तरीय शिक्षा में मैंने काफी शोध किये जिसके लेख राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हुए । इसी तरह मेरी उच्च स्तरीय शिक्षा पूर्ण हुई व मेरी शादी 2011 में हुई। मेरी धर्मपत्नी ने भी मेरा हर मोड पर बहुत साथ दिया | ईश्वर की कृपा से दो पुत्ररतन की प्राप्ति हुई जिनके नाम क्रमश कपिश व काव्यांश है।

सन 2016 में मेरे जीवन में एक नया मोड आया व मेरी मुलाकात विश्वगुरु महामंडलेश्वर श्री परमहंस स्वामी महेशावानंद पुरी जी महाराज से हुई। महाराजजी जी बड़े दरियादिली व ईश्वररूपी सक्शियत के धनी थे । उनके आशीर्वाद व सानिध्य से ही में अंतराष्ट्रीय आश्रम ॐ श्री विश्वदीप गुरुकुल स्वानी महेशावानंद शिक्षा व शोध संस्थान का हिस्सा बना।

सन 2016-17 से जाडन आश्रम द्‌वारा संचालित श्री परमहंस स्वामी माधवानंद महाविदयालय में प्राचार्य के रूप में मुझे सेवा प्रदान करने का मौका मिला तब से लेकर अब तक महावि‌द्यालय में शिक्षा + संस्कार + संस्कृति के मूल्यों के साथ शैक्षणिक कार्य कराने का प्रयास कर रहा हु व पिछले दो वर्षों में आश्रम द्वारा संचालित महाविद्यालय व विद्यालय में निदेशक के पद पर अपनी सेवा दे रहा हु ।

मेरी हमेशा यही कोशिश रहती है की किस तरह से शिक्षा जगत में हम नया कर सकते है। आज भी मैं घंटो बैठ कर किताबे पढता हूँ व हमेशा बच्चो के हित व राष्ट्रहित में अपनी सेवा देने के लिए तत्पर रहता हूँ।

मेरा सपना देश के हर युवा व बच्चो तक शिक्षा को पहुचाना तथा उसके साथ ही उनको देश की सभ्यता व संस्कृति से जोड़े रखना है | इसी के साथ मैं अपनी कलम को विराम देता हूँ। जय हिन्द