महाविद्यालय : परिचय

ईशावास्योपनिषद (11) की एक पंक्ति है “अविद्या मृत्यु तीर्वा विद्यादमृतमनुस्ते” जो विद्या अविद्या इन दोनों को एक साथ जानती है वह अविद्या (भौतिक ज्ञान) से मृत्युलोक को पार करके विद्या से अमृतत्व प्राप्त कर लेती है। कर्म से जीवन में पूजा होती है और पूजा से ही मृत्यु तत्व की प्राप्ति होती है। यह पूजा ही विद्या है। संभावना इसलिए कि हमारे देश के महान तपोनिष्ठ ऋषि और आचार्य विद्या की आराधना का प्रयास उनकी साधना में रटने के लिए उनके सम्यक् प्रकाशन में निरंतर संलग्न रहे।

समय-समय में शिक्षा का प्रारूप (व्यवस्था) बदली कालान्तर में आश्रम व्यवस्था बदली तो शिक्षा के उपकरण भी बदले, किन्तु समाज के अभ्युदय की कामना करने वाले संतो की प्रवृत्ति अपरिवर्तित रही, उनकी मानवतावादी दृष्टि व लोक मंगल की भावना पहले जैसी ही रही। यही कारण है कि पूर्वकाल की भाँति स्वातंत्रयोचार युग में भी उच्च स्तरीय अध्ययन-अध्यापन के अनेक केन्द्र विद्यानुरागी इन सन्तों एवं महात्माओं द्वारा स्थापित किए गए।

हमारा श्री परमहंस स्वामी माधवानन्द महाविद्यालय जाडन भी ऐसे ही संस्थानो में से एक है जो ॐ श्री विश्वदीप गुरुकुल स्वामी महेश्वरानन्द आश्रम शिक्षा एवं शोध संस्थान द्वारा संचालित है। जिसे हिन्दुधर्म सम्राट परमहंस स्वामी माधवानन्दपुरी जी के नाम से अंलकृत कर इसकी स्थापना 14 अगस्त 2006 को विश्वदीप महामण्डलेश्वर परमहंस स्वामी महेश्वरानन्द पुरी जी महाराज के आशीर्वाद व स्वामी माधवानन्द जी के परमभक्त श्री जेठमल विनावास (बीकानेर) के कर कमलों से हुई। विश्वगुरुजी की प्रेरणा एवं उन्ही के संरक्षण में यह संस्था तभी से निरन्तर विकास के पथ पर अग्रसर है। संप्रति यहां कला वर्ग, विज्ञान वर्ग व योग के अन्तर्गत विविध विषयों में उच्चस्तरीय अध्ययन-अध्यापन का कार्य सुचारू रूप से होता है।

सन् 2006-2007 से महाविद्यालय शिक्षा के साथ-साथ अन्य गतिविधियों में निरन्तर प्रगति के पथ पर अग्रसर है। विद्यार्थियों के सम्पूर्ण व्यक्तित्व विकास के साथ अनुशासित जीवन जीने की शिक्षा हमारा अह्म ध्येय है। भारतीय संस्कृति की ओर उन्मुख तथा जीवन मूल्यों पर आधारित शिक्षा जिसमें प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए रोजगारोन्मुखी विद्यार्थियों का सर्वागीण विकास की ओर ध्यान दिया जाता है।

प्रत्येक विद्यार्थी को उसकी रुचि के विषयों में वांछित व उच्चस्तरीय शिक्षा मिले, यही हमारा पावन संकल्प है। आशा है हम सभी वर्तमान सत्र में अनेक क्षेत्रों में अधिक गतिशील, चिन्तनशील एवं अध्ययनशील होंगे।